क्या आप जानते हैं एक psychological facts में की लाइट्स के कलर को चेंज करके कई देशों ने अपनी सिटी के क्राइम रेट को कम किया है। क्या आपको ये पता है कि अगर आप किसी क्रिकेट टीम की t-shirt का कलर चेंज कर हो तो उस कलर के अकॉर्डिंग उसकी हारने के चांसेस बढ़ सकते हैं। अगर आपकी नींद पूरी न हो तो कोई आपको ये विश्वास दिलवा सकता है कि आपने किसी का मर्डर किया है और आप ये मान भी लेंगे।

क्या आपको ये पता है कि अगर आप किसी पेशंट को जल्दी ठीक करना चाहते हो तो वो जल्दी ठीक हो सकता है। अगर आप उसका कमरा किसी पर्टिकुलर जगह पर रख दो। क्या आपको ये पता है कि अगर आपका नाम ज्यादा मर्दाना साउंड करता है तो आपकी जॉब में प्रमोशन के चांसेज ज्यादा है। अगर आपको ये सारे phycological facts नहीं पता तो आज देखेंगे वो भी proper research proof के साथ।

1. Color Changes The Mood and Behavior:

एक बार कैनेडा के दो researchers। ये जानने के लिए बहुत उतावले हो रहे थे कि क्या रूम के कलर चेंज करने से इंसानों के मूड में कोई फर्क पड़ता है या नहीं। इसलिए वो कैनेडा के different classrooms में गए और उन्हें different color से paint कर दिया। किसी क्लास में उन्होंने ब्लू, ग्रे, किया किसी में ग्रीन, किसी में येलो और किसी में पिंक। उसके बाद उन क्लासेज को वो दोनों रिसर्चर्स ऑब्जर्व करने लगे। हर कलर का कुछ न कुछ इफेक्ट स्टूडेंट्स पर हो रहा था। ब्लू से स्टूडेंट्स को आसमान और oceans आधारित ग्रीन से पेड़ पौधे।

Color Changes The Mood and Behavior

लेकिन जिस क्लास को पिंक कलर से पेंट किया गया था उस क्लास में बैठे स्टूडेंट्स बहुत ही शांत और obedient हो गए थे। इंटरेस्टिंग बात तो यहां पर शुरू होती है कि इस रिसर्च पर ज्यादा विश्वास नहीं किया गया। इसलिए alex schauss नाम की कॉलेज researcher इस एक्सपेरिमेंट को खुद टेस्ट करना चाहा और ये सोचा कि क्या वो बहुत ही स्ट्रॉन्ग आदमी को सिर्फ एक कलर दिखा के कमजोर बना सकता है या नहीं इसलिए उन्होंने सबसे पहले तो handgrip dynamometer ही दे जिसे प्रेस करने से ये पता चल जाता था कि किसी की ग्रिप कितनी स्ट्रॉन्ग है powerful है।

उसके बाद इन रिसर्चर्स ने एक एक करके 153 strong आदमी को कमरे में बुलाया। इनमें से आधे आदमियों को इन्होंने पहले एक ब्लू color का कार्डबोर्ड दिखाया और उसके बाद पिंक कलर का और फिर कहा कि जितना झोर है उतनी ताकत से इस dynamometer को press करो। इसके बाद बाकी आधे कंटेस्टेंट्स को उन्होंने एक एक करके बुलाया और उन्हें पहले कार्डबोर्ड में पिंक कलर दिखाया और उसके बाद ब्लू कलर और फिर उनसे भी यही कहा कि इस dynamometer को जितनी जोर से हो सके पेश करो.

इन सब की measurements एक कॉपी में लिखी। इस रिसर्च के रिजल्ट जब सामने आए तो सब चौंक गए majority लोगों ने dynamometer को जोर से प्रेस किया था जब उन्हें ब्लू का डाउट पहले दिखाया गया था जबकि पिंक कार्डबोर्ड दिखाने पर वो स्ट्रॉन्ग मैन भी कमजोर पड़ गए थे। इतना ही नहीं ये एक्सपेरिमेंट इतना फेमस होगा कि सबको लगा कि पिंक कलर लोगों को शांत कर सकता है इसलिए जेल के अंदर लोगों ने पिंक कलर करना स्टार्ट कर दिया। रूम में पिंक कलर करना शुरू कर दिया। जेल के प्रिजनर्स को पिंक कलर के कपड़े पहना दिए।

2. Color Strategy to Defeat Opponents:

जब लोगों को ये पता चला कि कलर से ह्यूमन बिहेवियर में फर्क पड़ता है यानि पिंक कलर हमें शांत करता है और और वीक बना देता है तो कहीं कॉलेजेस में स्पोर्ट्स टीचर ने अपने गेस्ट लॉकर रूम और ह्यूमन टॉयलेट्स भी पिंक कलर की करवा दी ताकि जब उनका कॉलेज फुटबॉल मैच ऑर्गनाइज करवाए और दूसरे कॉलेज की टीम उनके कॉलेज में खेलने आए तो उन्हें ये पिंक कलर वाले लॉकर रूम और टॉयलेट्स यूज करने को दिए जाएंगे ताकि इस पिंक कलर से वो थोड़े शांत पड़ जाएं जिसकी वजह से उन्हें हराना आसान हो जाएगा.

लेकिन NCAA बाद में ये orders कर दिए की ऐसा नहीं होगा। दोनों फुटबॉल टीम के लॉकर्स और टॉयलेट के कलर एक ही होने चाहिए। इतना ही नहीं जापान ने कई अपनी सिटीज में रात के समय में ब्लू लाइट को यूज करना स्टार्ट कर दिया था जिसे crime rate बहुत कम हो गया था। लॉजिक ये था कि ब्लू लाइट से सब कॉन्शस लोगों को पुलिस की याद आएगी और वो ज्यादा बैटर बिहेव करेंगे और ऐसा हुआ भी.

3. Psychological Facts Make Someone Believe:

बेटे को यकीन दिलवाया कि उसने अपनी मां का मर्डर किया है और वो मान भी गया. 18 साल का एक लड़का जिसका नाम peter reilly था. उसकी पूरी लाइफ चेंज होगी जब वह church से वापिस घर में आया और उसने देखा कि उसकी मां जमीन पर गिरी हुई है और पूरी बॉडी से ब्लड निकल रहा है। पीटर पूरा घबरा गया और उसने इमर्जेंसी पुलिस को फोन कर दिया। पीटर के शरीर

में एक भी खून की बूंद नहीं थी लेकिन फिर भी पुलिस वालों को शुरू से उसपर ही शक होने लगा था. पुलिस की टीम उसे पूछताछ करने के लिए उसे जेल ले गई। उसे अगले 16 घंटे तक सोने नहीं दिया गया और इंटेरोगेशन चलती रही और जब पीटर नील की हालत में था तो पुलिस ने उसे कन्वेंस कर दिया कि उसने अपनी मां का मर्डर किया है। इंटेरोगेशन कुछ इस तरीके से हुई थी।

Policeman: पीटर तो याद है कि तुमने ही अपनी मां का कत्ल किया है।

Peter: मुझे पता नहीं लेकिन अगर आप कह रहे हों तो मैं खुद को imagine कर पारा हूं की शायद मैंने एसा किया हो।

Policeman: तुम्हें ये भी याद आ रहा कि तुमने ही अपनी मां की टांगों में मारा था। तभी वो फ्लोर में गिरी।

Peter: जब जब आप ऐसा कह रहे हैं तो मैं imagine कर पारा हूं शायद ही ऐसा किया होगा।

Policeman: तुम इमैजिन नहीं करें। ये सच्चाई है जो तुम खुद हमें बताना चाहते हो।

Peter: शायद ये हो भी सकता है। इस कन्फेशन के बाद जब पीटर सो के उठा तो उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसने ऐसा कन्फेशन दिया है.

लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पीटर को जेल में डाल दिया गया। पूरे दो सालों बाद जब नया प्रॉसिक्यूटर वहां पर आया तो उसने पीटर की फाइल्स देखी तो उसे पता चला कि पीटर तो मर्डर के टाइम पर अपनी मां के साथ था ही नहीं और बाद में वो निर्दोष साबित हुआ और उसे छोड़ दिया गया। साइकॉलजी में लोग इसे कहते हैं “what’s focal is causal” यानी जो आपका मूड है उस वक्त आप जिस चीज को देख रहे होंगे आप सारे इमोशंस उसी के साथ जोड़ देंगे।

अगर आप बहुत गुस्से में हों तो जो उस वक्त आपके सामने है उस इंसान के साथ अब गुस्से की emotion जोड़ दो गे और यही पीटर के साथ हुआ। जब चीफ इन्वेस्टिगेटर ने पीटर की मां की लाश देखी और साथी पीटर को देखा तो उसका सारा शक पीटर की तरफ हो गया और इस बात की वजह से उसने बाकी सस्पेक्ट पर ध्यान ही नहीं दिया और जबरदस्ती पीटर से ही confesion में लेलिया.

4. Patient Recovery Depends On His Location:

Paoli Memorial Hospital में research की गई। रिसर्चर्स ने 48 पेशंट्स लिए जिनका अभी gallbladder का ऑपरेशन हुआ। इन 48 पेशेंट्स को दो ग्रुप में डिवाइड किया गया। Group 1 और group 2 रूपवान और दोनों में 24 पेशेंट्स थे। ये सारे पेशेंट्स एक जेसे थे। इनकी स्मोकिंग हिस्ट्री, एक्ससाइज हिस्ट्री और weight same था। रिकवरी के लिए सारी पेशेंट्स को एक एक करके रूम दिया गया। रूम में सब कुछ same था.

डॉक्टर्स भी medicines भी same थीं. लेकिन बस एक डिफरेंस था वो था view का, हॉस्पिटल का स्ट्रक्चर कुछ ऐसा था कि ग्रुप वन के रूम की खिड़की से सिर्फ दीवार दिखती थी लेकिन ग्रुप टू के रूम की विंडो से ग्रीनरी पेड़ और पौधे दिखते थे। यहां हम देख सकते हैं कि ग्रुप 1 वानर ग्रुप 2 के पेशेंट्स को रूम में क्या क्या देखता था.

Patient Recovery Depends On His Location:
Image: Paoli Memorial Hospital

तो रिसचर्स ये जानना चाहते थे कि क्या पेशेंट का व्यू उनकी रिकवरी में कोई impact डालता है कि नहीं। यह एक बहुत बड़ा फर्क था इनकी रिकवरी में. ग्रुप वन के पेशेंट्स को हर रोज कम से कम 6.5 pain killers दी जाती pain कम करने के लिए जबकि ग्रुप टू के पेशेंट्स सिर्फ 3 pain killers दी जाती और इवन ग्रुप टू के पेशेंट्स जिन्हें अपनी विंडो से पेड़ और पोधे दिखते थे वो जल्दी रिकवर होकर अपने घर चले गए. जबकि ग्रुप वन के पेशेंट्स को बहोत टाइम लगा.

5. Your Name Can Impact Your Promotion:

पेरेंट्स अपने बच्चे का नाम अलग mentality से रखते हैं। कोई अपने बच्चों का नाम हिस्ट्री के बेसिस पर रखता है, कोई धर्म के बेसिस पर तो कोई foren नाम रखें ये सोचता है कि ये स्टाइलिश लगेगा लेकिन बहुत ही कम पेरेंट्स जानते हैं कि नाम से बच्चों की लाइफ में भी बहुत बड़ा इम्प्लांट पड़ सकता है। फॉर एग्जाम्पल नाम कितना इजी है बोलने में या डिफिकल्ट नाम proper sound करता है या नहीं. ये भी हमारे फ्यूचर को impact करता है. काफी लोग बोले होंगे। ऐसा हो ही नहीं सकता। नाम से क्या फर्क पड़ सकता है।

तो चलिए एक research से देखते रिसचर्स ने ये जानने के लिए एक एक्सपेरिमेंट किया, कि क्या बोलने में जो आसान नाम है क्या उन्हें जल्दी प्रमोशन मिल जाती है या नहीं। इसके लिए उन्होंने 500 advocated के नाम उठाए और फिर कॉमन लोगों को उनके नाम पढने को दिए ताकि वो ये डिसाइड कर सकें कि किस एडवोकेट का नाम पढने में आसान है और कितना मुश्किल। जब इस डेटा को एडवोकेट की प्रमोशन लिस्ट के साथ कंपेयर किया गया तो सब हैरान हो गए।

जिन एडवोकेट्स के नाम बोलने में आसान थे उनमें से ज्यादातर एडवोकेट्स को जल्दी प्रमोशन मिली थी। दूसरे एडवोकेट्स के comparatively. अब सिर्फ नाम से ही कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर कोई अच्छा perform कर ही नहीं रहा और सब आसान नाम वाले एडवोकेट्स को भी प्रमोशन नहीं मिली थी लेकिन आसान नाम वाले लोग अच्छा परफॉर्म करते थे। मुश्किल नाम वाले इंसानों से इस इमेज में आप देख सकते हैं कि fluent नेम को थोड़ी सी एक्स्ट्रा एडवांटेज थी।

Psychological Facts

इस article में हमने बहुत ही इंटरेस्टिंग फैक्ट्स देखें जैसे कि पिंक कलर हमें शांत कर देता है और इवन कई बार वीक बना देता है. फनी ये था कि पिंक कलर से कई कॉलेजेज ने अपने टॉयलेट्स और लॉकर रूम्स भी कलर करवा दी ताकि अपनी अपनी टीम को हरा सकें। उसके बाद हमने fact no. 3 में peter reilly की स्टोरी देंगी कि कैसे हम अपने इमोशंस को सिचुएशन के कॉन्टेंट किसी के साथ भी अटैच कर देते हैं।

जैसे कि चीफ इन्वेस्टिगेटर ने पीटर को अपनी मां का झूठा कातिल बना दिया और नींद की वजह से पीटने झूठी मेमरी भी बना ली कि उसी ने अपनी मां का कत्ल किया है. Fact no. 2 में हमने देखा था कि ग्रीन एनवायरमेंट की वजह से पेशंट बहुत जल्दी रिकवर हो जाते हैं और फिर हमें देखता कि कैसे एक असान बोलने वाला नाम भी हमें थोड़ी सी एक्स्ट्रा एडवांटेज दे सकता है प्रमोशन। वैसे मुझे लगता है कि इस argument पर थोड़ी सी और research होनी चाहिए. अगर आप अपने ब्रेन को इम्प्रूव करना चाहते हैं तो सबसे बेस्ट तरीका है कि हम most successful लोगों की बुक्स पढ़ें।